कविता/ प्रतिफल


उठो अब आंखें खोलो
दुनिया बहुत विशाल है

करना है बहुत कुछ तुझे
यह भारत देश तो बेमिसाल है

कितनी गंदगी फैली है इसमें
सब का विचार गोल मटोल है

रस्साकशी होती है अभी भी
इसका हिसाब लेना मजबूरी है

धरातल पर सब देखा है हमने
ये तस्वीर देखने लायक नहीं है

दु:ख – दर्द से कराहते देखा है हमने
ह्रदय विदारक दृश्य देखना मजबूरी है

बहुत सोचकर किसी ने हिम्मत किया
निस्तारण के लिए विगुल बज चुका है

वज्र,धनुष,संहारक को थाम लिया
शस्त्र उठाना अब केवल बाकी है

अति, अनर्थ, कठोर , काल , कल्पित
उसे अभी तक क्यों नहीं पहचाना है

सब कुछ का संधारण अब हो चुका
प्रतिफल देखना केवल अभी बाकी है

सब कुछ सहन किया है हमने
मर्यादा पुरुषोत्तम को नहीं जाना है

समय का इंतजार करते हैं अभी
उसे जला कर राख कर देना बाकी है

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