कविता/ कविता का श्रृंगार


हे युग के सभी
कुशल तारणहार

आनंद रहे सुबह- शाम
रहे हरदम सदाबहार

यह क्रम सदा चलते रहे
वुलंद रहें पालनहार

स्वस्थ रहे सदा सभी
युग के सभी कर्णधार

ये तो खुशी है
मिलेगी पूर्ण आहार

कितनी अच्छी सोबती है
गला में यह चंद्रहार

हम तो रहे हिमायती सदा
नहीं मिली कविता श्रृंगार

है नहीं कोई अंतर इसमें
परिजात मिले या सिंगार

अभी तक 50 वाँ सम्मान
का मिला अलंकार

दुआ मांगते हैं भगवान से
खोलते रहे ये द्वार

है यह “सुकंठ “की बाणी
टूटे नहीं यह क्रम बार

टूटे नहीं यह कर्म बार
टूटे नहीं यह क्रम बार

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